एएम नाथ । शिमला : मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अगुवाई वाली हिमाचल प्रदेश सरकार को मंगलवार को उस समय तगड़ा झटका लगा जब हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने जल विद्युत उत्पादन पर लगाए गए वॉटर सेस को ‘असंवैधानिक’ घोषित कर दिया। अदालत का यह फैसला वॉटर सेस को चुनौती देने वाली हाइड्रोपॉवर प्रमोटरों की ओर से दाखिल रिट याचिका के बाद आया। जस्टिस त्रिलोक चौहान और सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने मंगलवार को यह फैसला सुनाया।
40 से ज्यादा कंपनियों ने लगाई थी गुहार
बताया जाता है कि हिमाचल प्रदेश की लगभग 40 बिजली उत्पादक कंपनियों ने राज्य सरकार के वॉटर सेस को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। सुक्खू सरकार ने सत्ता में आते ही आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए राज्य में चल रही बिजली परियोजनाओं पर जल उपकर लगाने का फैसला किया। मालूम हो कि हिमाचल प्रदेश जल विद्युत उत्पादन उपकर विधेयक-2023 को 14 मार्च, 2023 को विधानसभा में पेश किया गया था। यह 16 मार्च 2023 को पारित हुआ था। लगभग 170 कंपनियों ने जल आयोग के साथ अपना पंजीकरण कराया था।
सरकारी कंपनियां थी खिलाफ
कुछ कंपनियों ने सरकार को टैक्स भी देना शुरू कर दिया था लेकिन कई बड़ी कंपनियां इस फैसले के खिलाफ कोर्ट चली गई थीं। हिमाचल प्रदेश वॉटर सेस आयोग ने 173 बिजली उत्पादक कंपनियों को पिछले साल मार्च से जुलाई की अवधि के लिए 871 करोड़ रुपये का वॉटर सेस वसूलने के लिए नोटिस जारी किया था। कुछ प्राइवेट बिजली कंपनियों ने इसका अनुपालन किया जबकि सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट का रुख किया।
याचिकाकर्ताओं ने क्या गुहार लगाई?
एवरेस्ट पावर प्राइवेट लिमिटेड (Everest Power Private Limited) ने अदालत में गुहार लगाई कि हाइड्रो पावर जेनरेशन एक्ट 2023 से हिमाचल प्रदेश वॉटर सेस को असंवैधानिक घोषित किया जाए। इसे रद्द किया जाए। बता दें कि जलविद्युत उत्पादक कंपनी एवरेस्ट पावर प्राइवेट लिमिटेड – कंपनी ने हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू में 100 मेगावाट की मलाणा II जलविद्युत परियोजना शुरू की है। यह काफी पहले ही चालू हो चुकी है और बिजली पैदा कर रही है।