खड़गे के करीबियों ने वसूले 15 लाख, फिर भी नहीं दिया ठेका, ठेकेदार ने की ख़ुदकुशी?

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बैंगलोर: कर्नाटक के बीदर में ठेकेदार सचिन मोंगप्पा पांचाल की ख़ुदकुशी के मामले ने कांग्रेस सरकार पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। सचिन ने ट्रेन के आगे कूदकर जान दी, और अपने सुसाइड नोट में कांग्रेस के आठ नेताओं पर प्रताड़ना का आरोप लगाया।
इन नेताओं में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के बेटे और राज्य सरकार में मंत्री प्रियंक खड़गे के करीबी लोग भी शामिल हैं। खासतौर पर एक नेता, राजू कपनौर, का नाम सामने आया है।
            सुसाइड नोट के मुताबिक, कांग्रेस नेताओं ने सचिन से पहले 15 लाख रूपए रिश्वत ली और फिर भी उन्हें ठेके नहीं दिए। इसके बाद, वे 1 करोड़ रपए और मांगने लगे। जब सचिन ने यह रकम देने से इनकार किया, तो उन्हें जान से मारने की धमकी दी गई। ठेकेदार की बहन कविता पांचाल ने भी कांग्रेस नेताओं को अपने भाई की मौत का जिम्मेदार ठहराते हुए पुलिस में FIR दर्ज कराई है। मामले पर प्रियंक खड़गे ने सफाई दी है, लेकिन उनका बयान महज औपचारिकता लगता है। उन्होंने कहा कि उन्हें इस घटना की जानकारी नहीं थी और वह जांच करवाएंगे। वहीं, उनके करीबी नेता ने मृतक ठेकेदार को ही फ्रॉड करार दिया है।
                    यह घटना कांग्रेस सरकार की विफलता को उजागर करती है, जहां सत्ता के करीबी नेता खुलेआम ठेकेदारों से वसूली कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या कांग्रेस पार्टी, जो लोकतंत्र और संविधान बचाने की बात करती है, अब इस ठेकेदार के परिवार को इंसाफ दिलाने के लिए कोई कदम उठाएगी? राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने अक्सर ऐसे मामलों में संवेदनशीलता दिखाने का दावा किया है, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या वे इस मृतक ठेकेदार के परिवार से मिलने जाएंगे और दोषियों पर कार्रवाई का भरोसा देंगे? या फिर यह मामला भी दबा दिया जाएगा क्योंकि इसमें उनके ही दल के नेता शामिल हैं।
संभल जैसे मुस्लिम बहुल इलाकों में कांग्रेस के बड़े नेता तुरंत पहुंच जाते हैं, क्योंकि वहां उनका वोट बैंक जुड़ा होता है। लेकिन इस ठेकेदार की मौत पर किसी कांग्रेस नेता के परिवार से मिलने की संभावना कम ही दिखती है। शायद इसलिए क्योंकि मृतक हिंदू था। अगर मृतक मुसलमान होता, तो मुआवजा भी मिल जाता और कुछ अफसरों पर कार्रवाई भी हो जाती। लेकिन अब यह देखना बाकी है कि कांग्रेस अपनी छवि सुधारने के लिए क्या कदम उठाती है, या फिर मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करती है।
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